Friday, October 14, 2022

सर्वेश्वर (new age Krishna)

 सर्वेश्वर (new age Krushna)


मोहन एक बिझनेस टायकून है। वह अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ मुंबई मे रेहेते है। मोहन और रुक्मिणी को एक बेटा और एक बेटी है। वह दोनो अमेरिका मे अपनी पढाई कर रहे है। मोहन के चचेरे भाई उद्धव बिझनेस मे मोहन का हाथ बटाते है। उद्धव का अपना परिवार है। लेकिन वह जादा समय मोहन के साथ ही बिताते है। वह रोज सुबह मोहन के घर आते है और मोहन के साथ ही ऑफिस जाते है। रात को मोहन घर को घर छोडने के बाद ही वह अपने घर जाते है। उद्धव और रुक्मिणी मे भाई बेहेन जैसा प्यार है।

रुक्मिणी ने मोहन के साथ भागकर शादी की होती है। रुक्मिणी का भाई इस बात को लेकर रुक्मिणी से बोहोत नाराज है और इतने साल होने के बावजुद अभि भी रुक्मिणी से उसके मैके के लोग कोई contact नही रखते। रुक्मिणी इस बात को लेकर मन ही मन दुखी रेहेती है लेकिन ये अपने मन का ये दुख कभी दिखाती नही है। रुक्मिणी शुरवात के दिनो मे मोहन का हाथ उसके business मे बटाती है। लेकिन फिर घर की जिम्मेदारिया बढने की वहज से वह ऑफिस आना बंद कर देती है।

मोहन जब अपने बिझनेस की शुरवात करते है तब वह एक बडे बिझनेस मॅन सत्रजित से मदत मांगते है। लेकिन वह इन्कार कर देते है। सत्रजित की बेटी सत्यभामा मोहन को कॉलेज के दिनो से जानती है और मन ही मन उन्हे चाहती है। सत्यभामा का डिव्होर्स हुवा होता है। जब सत्यभामा को पता चलता है के मोहन सत्रजीत से मदत चाहते है तब वह अपने पिता को insist करती है के वह ये प्रस्ताव मान ले और मदत के बाजाए पार्टनरशिप कर ले। इस तरह सत्यभामा मोहन की बिझनेस पार्टनर बन जाती है। सत्यभामा हर वक्त मोहन को पाने की कोशीष मे रेहेती है।

मोहन की सेक्रेटरी का नाम जाम्बवती है। जाम्बवती बोहोत ही होशियार है। वह मोहन का बॅक ऑफिस बोहोत ही अच्छेसे संभालती है। जाम्बवती दीखने मे एकदम ordinary है। उसकी शादी की उम्र निकल चुकी है। घर की जिम्मेदारियो के कारन उसने शादी नही की है।

मोहन के बडे भाई बलराम मोहन का दिल्ली का बिझनेस संभालते है। लेकिन बलराम को अपने काम से ज्यादा वर्जिष का लगाव है। इसलीये उनका बिझनेस मे ज्यादा ध्यान नही होता। इस बात का फायदा मोहन के रायव्हल हिमालय लेते है और एसी situation पैदा करते है के बलराम business world मे बदनाम हो जाएंगे और दिल्ली का बिझनेस बंद पड जाएगा। मोहन के मॅनेजर सात्त्यकी ये बात मोहन को बताते है। मोहन उद्धव को हिमालय की पर्सनल इंफॉर्मशन निकलने केहेते है। हिमालय की बेटी सत्या को बॉलिवूड मे एन्ट्री करनी है। ये बात पता चलते ही मोहन उद्धव को लेकर दिल्ली जाते है। वह सत्या को डिनर पर invite करते है और वहा उसे बोलते है के अगर वह अपने पिता से बलराम ने साईन किये हुवे documents लाकर देगी तो मोहन उसे बॉलिवूड की बडी फिल्म मे ब्रेक देंगे। सत्या मोहन की personality से impress हो जाती है और उनका काम करने का प्रॉमिस उसे करती है। उद्धव जब ये बात सुनते है तब वह मोहन को पूछ्ते है के क्या ऐसा करना सही है और क्या ये जरुरी है? मोहन बोलते है के हिमालय ने छल से बलराम भैया के sign लिये थे। अगर कोई आपसे कपट करता है तो उसे सबक सिखाना गलत बात नही है। उद्धव पुछ्ते है के क्या सत्या को बॉलिवूड का सपना दिखाना ठीक है? क्योकी अगर हिमालय चाहते तो वह खुद एक फिल्म उसके लिये बना लेते। लेकिन उनोन्हे ऐसा नही किया। इसका मतलब वह नही चाहते की सत्या बॉलिवूड मे काम करे। तब मोहन हसकर बोलते है के सत्या एक बडी लडकी है। अब वह इस मोडपर आचुकी है के उसे कोई फरक नही पडता के उसके पिता क्या सोचते है। वह बॉलिवूड मे काम करनेकेलीये घर छोडकर भी जा सकती है। हो सकता है के वह गलत हाथो मे पडजाए। उससे अच्छा तो यही है के मोहन उसकी मदत करदे। वैसे भी उसे सिर्फ एक push की जरूरत है। Eventually वह अपनेआप को prove करलेगी ये सच है।

मोहन घर आते है और फ्रेश होने के लिये अंदर जाते है। उद्धव रुक्मिणी के साथ बैठते है। रुक्मिणी उन्हे बलराम भैया की खबर पुछती है। जिस काम के लिये गये थे वह हुवा क्या ये भी पुछती है। उद्धव हसकर बोलते है के यह प्रश्न रुक्मिणीने मोहन से ही करना चाहीये। तभि मोहन बाहर आते है। रुक्मिण उद्धव को खाना खानेके लिये रोकना चाहती है। लेकिन मोहन रुक्मिणी को समझाते है के वह उद्धव को बोहोत granted लेते है। उद्धवने अपने घर परिवार को भी वक्त देना चाहीये। रुक्मिणी इसपर हसती है। उद्धव निकल जाते है।

मोहन और रुक्मिणी खाना खाने बैठते है। रुक्मिणी दिल्ली के काम के बारे मे पुछती है। मोहन उसे सबकूच बताते है। रुक्मिणी हसकर बोलती है के क्या सच मे इतना कूच करने की जरूरत है? मोहन बोलते है के वह कूच भी गलत नही कर रहे। अगर कोई केवल खुद के लिये किसीं ओर को hurt करता है तो यह बात गलत है। लेकिन जब कोई आगे की सोचकर या सभी के लिये जो अच्छा है ये सोचकर कूच निर्णय ले तो वह गलत नही होता। अब मोहन और रुक्मिणी जिंदगी के ऐसें मोडपर है के उन्हे अपने खुद से ज्यादा अपने आजूबाजू के लोगोंके लिये सूचना चाहीये। इसलीये कभी कभी मन मे न होते हुवे भी मोहन वही कर रहे है।

मोहन के पिता नंद के दोस्त वसुदेव मोहन के शहर मे ही रेहेते है। नंद और वसुदेव मे गहरी दोस्ती होती है। शादी के बाद जब मोहन रुक्मिणी के साथ शहर आने की सोचते है तो नंद उसे वसुदेव के पास जानेकीं सलाह देते है। वसुदेव और उनकी पत्नी देवकी मोहन और रुक्मिणी को बोहोत मदत करते है। मोहन के business की शुरवात मे वसुदेव ही बँक मे गॅरेटर रेहेते है। मोहन और रुक्मिणी के वसुदेव और देवकी के साथ बोहोत ही अच्छे संबंध बंध जाते है।

जब देवकी का जन्मदिन होता है तो मोहन उसे मिलने जाते है। मोहन उद्धव के साथ गाडी मे बैठकर काम की बात कर रहे होते है। मोहन का ड्राईव्हर दारुकी मोहन से कूच बात करना चाहता है लेकिन मोहन उद्धव से काम की जरुरी बात कर रहे होते है तो दारुकी उनसे बात नही कर पाता। मोहन देवकी के घर के पास पोहोचते है और अंदर जाते है। वह देवकी और वसुदेव से मिलते है। थोडी देर बैठते है। देवकी उन्हे खाना खाने के लिये रुकने केंहेती है। लेकिन मोहन बिना रुके निकल जाते है। गाडी मे बैठते ही मोहन दारुकी को बोलते है के कब से यशोदा माँ ने भेजी उनके हाथ से बनी मिठाई जो दारुकी ने अपने पास रखी है वह उन्हे दे। दारुकी ये बात सूनकर हैरान होता है। तब मोहन बोलते है के जब से वह गाडी मे बैठे है तब से गाडी मे उसी मिठाई की खुशबू आरही होती है। दारुकि मोहन को बोलता है के जब मोहन दिल्ली गये थे तब मोहन को बिना बोले दारुकी गाडी लेकर गांव गया था। तब वह यशोदा माँ से मिला था। यशोदा माँ ने मोहन के लिये मिठाई देकर दारुकी को बोला था के आज के दिन ही उसने यह मिठाई मोहन को देनी है। दारुकी की बात सूनकर मोहन हस देते है।

मोहन ऑफिस पोहोचते है। मॅनेजर सात्यकी आकर मोहन को बोलते है के मोहन की पार्टनर सत्यभामाने एक नये client के साथ डील की है। इस client की कोई भी details मार्केट मे नही है। यह एक बडा ही गलत रिस्क है। मोहन सात्यकी को पुछते है के उनोन्हे सत्यभामा को रोका क्यों नही। सात्यकी केहेते है के सत्यभामा ने किसीं की बात नही मानी। तभि सत्यभामा; जो दिखनेमे बोहोत ही सुंदर है; बिना केबिन door knock किये अंदर आती है। वह सात्यकी की अधुरी बात सून लेती है और मोहन के सामने उन्हे डाटने लगती है। मोहन सत्यभामा को रोकते है और explain करते है के सत्यभामाने जिसके साथ डील sign की है वह client फ्रॉड है। सत्यभामा इस बात पर कूच उलटा जवाब देने की सोच ही रही होती है तब मोहन उसे याद दिलाते है के सत्यभामा के पिता सत्रजीत कंपनी को लेकर कितने perticular है। अगर उन्हे ये बात पता चली के सत्यभामा के कारण बडा लॉस्ट हुवा है तो वह ये बात accept नही करेंगे। अपने पिता का नाम सुनते ही सत्यभामा चूप हो जाती है।

तभि मोहन की secretary जाम्बवती अंदर आती है। जाम्बवती दिखनेमे बोहोत ही साधारण है। सत्यभामा हर वक्त जाम्बवती का अपमान करती रेहेती है। सत्यभामा को मोहन की बात का घुस्सा आया होता है। तो वह जाम्बवती का insult करती है। फिर वह मोहन को डिनर के लिये invite करती है। मोहन invitation accept करते है। तब सत्यभामा केबिन से निकल जाती है।

सत्यभामा के जाने के बात मोहन जाम्बवती को पुछ्ते है के वह हर बार सत्यभामा के tonts क्यों सून लेती है? और बोलते है के जो खुद के लिये stand नही लेते उनकी मदत कोई नही करता। जाम्बवती हसती है और बोलती है के वह सत्यभामा को इतना importence ही नही देती के उनकी बात का बुरा लगे। फिर वह मोहन को ऊस दिन के काम की update देती है और बाहर निकल जाती है।

सात्यकी मोहन को पुछते है के सत्यभामा उनकी business partner होतेहूए भी वह अपनी secretary जाम्बवती को सत्यभामा के खिलाफ क्यो भडकाते है। मोहन हसकर बोलते है के जब तक कोई खुद केलीये stand नही लेता तबतक कोई दुसरा मदत के लिये नही आता; यह बात जाम्बवतीने समझनी चाहीये। इसलीये मोहन हरबार जाम्बवती को टोकते है। सात्यकी हसकर बोलते है के लगता है आपने इतनी बार बोलने के बावजुद जाम्बवतीने ये बात मन पर नही ली। तब मोहन हसकर बोलते है के उसने पेहेले दिन ही ये बात समझली थी और इसलीये उसने अपनेआप को इस तरह groum किया है के उसे सत्यभामा की कोई भी बात का फरक ही नही पडता।

तभि उद्धव केबिन मे आते है। उद्धव आते ही मोहन को पुछ्ते है के क्या वह सच मे सत्यभामा के घर डिनर के लिये जा रहे है।


क्रमशः

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