Friday, October 28, 2022

सर्वेश्वेर (new age krishna) 3

 सर्वेश्वर (new age krishna) 3


अर्जुन की पत्नी द्रौपदी अपना खुद का business चलाती है। वह एक बोहोत ही focused, indipendent और होशियार लडकी है।

सुभद्रा और अर्जुन का डिव्होर्स होगया है। उसके बाद अर्जुनने द्रौपदी के साथ शादी कर ली है। इसलीये कुंती को द्रौपदी से शिकायत है।

रुक्मिणी जब यशोदा से मिलने गयी होती है तब मोहन की तबीयत खराब होती है। तो वह घर आते है। उसी शाम को सुभद्रा का एक बडे फॅशन शो का निमंत्रण होता है। द्रौपदी की एक बोहोत ही importent confarance होती है। इसी confarance के सिलसिलेंमे द्रौपदी को मोहन से कूच discuss करना होता है। वह घर आती है तो देखती है के मोहन की तबीयत ठीक नही है। वह अपना कॉन्फरन्स जाना कॅन्सल करती है और मोहन के साथ रुक जाती है। मोहन की तबीयत ठीक नही ये मालूम होते हुवे भी सुभद्रा शो देखनेके लिये जाती है।

कुंती कुंतीभोज नाम के एक बडे business man की बेटी होती है। सूरज एक साधारण घर का लडका होता है। जो कुंती को सिखाने घर आया करता है। उसे सूरज से प्यार हो जाता है। यह प्यार सच्चा होता है। लेकिन कुंती शादी के पेहेले ही प्रेग्नेंट हो जाती है। कुंती की माँ नही है। केवल पिता है। लेकिन कुंती को बचपन से एक धात्री नाम के दाई ने संभाला है। धात्री को पता चलता है के कुंती प्रेग्नेंट है। धात्री यह बात कुंती के पिता को नही बताती। लेकिन बोलती है के कुंती को पढाई करने शहर जाना चाहीये। कुंती के पिता ये बात मान लेते है और धात्री के साथ कुंती को भेज देते है। कुंती जाने से इन्कार करती है तब धात्री उसे बोलती है के अगर कुंती का प्रेग्नेंट होना उसके पिता को पता चलेगा तो वह heart अटॅक से मर जाएंगे। कुंती ये बात सूनकर घाबरा जाती है और धात्री के साथ शहर जाती है। वहा कुंती पढाई करती है और कर्ण को जन्म देती है। धात्री उसे force करती है के वह कर्ण को अनाथालय मे दे। फिर धात्री कुंतीभोज को बोलती है के कुंती की पढाई पुरी होने को है तो उसकी शादी करावा दो। कुंती को शादी नही करनी होती; लेकिन शादी न करने का कारण वह अपने पिता को बोल नही सकती। इसलीये फिर शादी कर लेती है। अर्जुन के जन्म के बाद उसके पती पांडू मर जाते है और कुंती business और बेटा दोनो संभालने लगती है।


कुंतीने जो business खडा किया है वही अर्जुन चला राहा है। कुंती भी अभी भी ऑफिस जाती है। कर्ण इन सभी की तुलना मे नया और छोटा business man है। किसीं पार्टी मे इसी बात पर अर्जुनने उसका अपमान किया होता है। तब कुंती कूच भी नही बोलती। अर्जुन का business ठीक से चल नही राहा होता। तो वह चाहता है के द्रौपदी उसे fainance की मदत करे। लेकिन द्रौपदी इस बात को इन्कार करती है। मोहन और द्रौपदी दोनोकी अच्छी दोस्ती है। तो मोहन द्रौपदी को समझाएगा इस आशा से कुंती और अर्जुन मोहन को मिलने आए है। मोहन अर्जुन को बँक लोन लेनेकीं सलाह देता है। लेकिन बँक लोन की रिस्क अर्जुन लेना नही चाहता। मोहन को ये बात गलत लगती है।

द्रौपदी और कर्ण एक ही business मे होते है। दोनो एक ही काम का टेंडर भरते है। जब कॉन्ट्रॅक्ट मिलने की बारी आती है तब द्रौपदी खुद फायनान्स assurance देती है। जब की कर्ण बँक गॅरंटी देता है। द्रौपदी ये बोलकर कॉन्ट्रॅक्ट लेती है के बँक गॅरंटी से उसका खुद financially sound होना ज्यादा मायने रखता है। उसकी यह agrument accept किया जाता है और कर्ण के हाथ से contract जाता है। कर्ण की दोस्ती एक पार्टी मे दुर्योधन से होती है। दुर्योधन बोहोत ही पैसेवाला होता है। दुर्योधन, द्रौपदी, अर्जुन, सुभद्रा, मोहन, रुक्मिणी यह सभी एक ही कॉलेज मे पढे है। दुर्योधन को द्रौपदी अच्छी लगती होती है। लेकिन द्रौपदी कभी उससे बात नही करती। सुभद्रा और अर्जुन के डिव्होर्स के बाद द्रौपदी और अर्जुन शादी कर लेते है। ये बात दुर्योधन को रास नही आती। जब दुर्योधन को पता चलता है के द्रौपदीने जो कॉन्ट्रॅक्ट हासिल किया है उसकेलीये कर्णने भी applay किया था; तो दुर्योधन कर्ण के मन मे द्रौपदी के लिये ईर्षा पैदा करता है।

दुर्योधन कर्ण की मदत से द्रौपदी को सताने लगता है। यह बात जब मोहन को पता चलती है तब मोहन कर्ण से दोस्ती कर लेता है और उसे बताता है के बडे घर की बेटी होते हुवे और शादी भी बडे घर मे की है; फिर भी वह किस तरह खुद busienss चलाती है। यह सूनकर कर्ण के मन मे द्रौपदी के लिये respect जाग जाता है। उसके बाद वह दुर्योधन की बात सुनता है लेकिन हर बार उसपे अंमल नही करता।

दुर्योधन के मामाजी शकुनी दुर्योधन के साथ ही रेहेते है। उन्हे ये मालूम है के दुर्योधन को द्रौपदी अच्छी लगती थी। इसलीये जब दुर्योधन कर्ण को द्रौपदी के काम मे प्रॉब्लेम खडा करने केहेता है और कर्ण ऐसा नही करता तो मामाजी दुर्योधन से ये बात बोलते है और कर्ण को द्रौपदी के काम मे प्रॉब्लेम करने केलीये force करते है। शकुनी मामा और उनकी बेहेन गांधारी बोहोत गरीब होते है। द्रुतराष्ट्र एक बोहोत अमीर business man होते है। एकबार वह किसीं hill station गये होते है। वहा वह गांधारी को देखते है और उनमे प्यार हो जाता है। द्रुतराष्ट्र गांधारी से शादी कर लेते है लेकिन उसे शहर लाकर पत्नी की तरह नही रखते। गांधारी दुर्योधन को जन्म देते ही मर जाती है। तब शकुनी मामा दुर्योधन को लेकर शहर द्रुतराष्ट्र के पास आते है। द्रुतराष्ट्र दुर्योधन को अपना बेटा स्वीकार तो करते है लेकिन उनके पास दुर्योधन के लिये वक्त नही होता। तो वह शकुनी मामा को रोक लेते है और दुर्योधन को संभालने की जिमदारी उन्हे देते है। शकुनी मामा धृतराष्ट्र से घुस्सा है के उनोन्हे गांधारी का स्वीकार नही किया। इसलीये वह मन ही मन तंय करते है के वह दुर्योधन को धृतराष्ट्र के खिलाफ कर देंगे और द्रुतराष्ट्र को उनके बुढापे दुर्योधन से दूर करेंगे। इसलीये वह हरवक्त दुर्योधन को अपने ही पिता के खिलाफ भी भडकाते रेहेते है।

मोहन थोडे डिस्टर्ब मन से घर आते है तो वहा उनकी बुवा कुंती और कुंती का बेटा अर्जुन आए होते है। वह कुंती को दुसरे रूम मे लेजाकर बोलता है के उसका शादी से पेहेले हुवा बेटा कर्ण; जो खुद एक बडा business man है; उसे अर्जुन की मदत करने कुंतीने केहेना चाहीये। कुंती कर्ण को जाकर मिलती है। लेकिन कर्ण इन्कार कर देता है। कुंती ऑफिस आकर ये बात मोहन को बोलती है। कर्ण और मोहन अच्छे दोस्त होते है। मोहन कर्ण से बात करनेके लिये फोन करता है। लेकिन कर्ण मोहन का फोन नही उठाता। कुंती बोहोत दुखी होकर वहा से निकल जाती है।

मोहन की बेहेन सुभद्रा का बेटा अभिमन्यू मोहन की मदत से अपनी माँ से झगडकर पढाई के लिये london गया है। सुभद्रा को लगता है के मोहन के कारण ही अभिमन्यू उससे दूर होगया है। तो वह मोहन से बात करना बंद करदेती है। इसलीये वह मोहन जब घर न हो तो रुक्मिणी से आकर मिलती है और मोहन के आने के पेहेले ही चली जाती है। एकदिन जब मोहन घर आते है तो उसे रुक्मिणी बोलती है के सुभद्रा आयी थी। ये बात सूनकर मोहन दुखी होते है और अपने रूम मे जाते है। रुक्मिणी उन्हे disturb नही करती।


क्रमशः 

Friday, October 21, 2022

सर्वेश्वर (The new age Krushna)

 सर्वेश्वर (The new age Krushna)

तभि उद्धव केबिन मे आते है। उद्धव आते ही मोहन को पुछ्ते है के क्या वह सच मे सत्यभामा के घर डिनर के लिये जा रहे है। मोहन इस बात पर सिर्फ हसते है। उद्धव मोहन को बोलते है के सिर्फ हसने से आज काम नही होगा। उद्धव मोहन को याद दिलाते है की आज मोहन और रुक्मिणी के कॉलेज मे हुई पेहेली मुलाकात की सालगिराह है और फिर बोलते है के यह बात सत्यभामा जानती है इसिलीये उसने मोहन को डिनर पे invite किया है। मोहन उद्धव को बोलते है के सत्यभामा सत्रजीत की बेटी है। मोहन किसीं भी हालत मे वह सत्रजित को hurt नही कर सकते। इसलीये वह सत्यभामा के घर जानेवाले है। ये बात उद्धव को अच्छी नही लगती। लेकिन वह मोहन को कूच नही केहेते। तब मोहन हसतेहुवे उद्धव को बोलते है के वह केवल सत्यभामा का इगो pamper करने उसके घर जानेवाले है। उसका मतलब ये नही होता के वह उसके घर डिनर करेंगे। उद्धव उन्हे पुछ्ते है के क्या सत्यभामा का इगो इतना महत्व रखता है? मोहन हसतेहूवे बोलते है के कभी कभी आपके केवल अच्छे बरताव से ही काम होजाता है। अगर वह सत्यभामा का इगो satisfy करेंगे तो सत्यभामा business मे गलत decissions नही लेगी। तो फिर यह डील बुरी नही है।

सत्यभामा को प्रॉमिस किया होता है तो मोहन उसके घर पोहोचते है। वहा उनकी मुलाकात सत्यभामा के पिता सत्रजीत से होती है। सत्रजीत मोहन को business कैसे चल रहा है ये पुछ्ते है। तभि सत्यभामा आती है। वह बोहोत ही खूबसुरत लग रही होती है। उसने आज मोहन को रोकने की ठान ली होती है। मोहन सत्रजीत को सत्यभामा ने की हुई डील के बारे मे बताना चाहते है। ये बात ध्यान मे आते ही सत्यभामा मोहन को रोकने की बाजाए उन्हे देर हो रही है ऐसा केहेकर जाने के लिये केंहेती है। निकलते वक्त मोहन उसे जताते है के केवल सत्यभामा जाने के लिये केहे रही है इसलीये वह जा रहे है। मोहन के मन का सच जानते हुवे भी सत्यभामा कूच नही कर सकती।

मोहन घर आते है तो देखते है के रुक्मिणी और उद्धव उनकी राह देख रहे होते है। मोहन को जल्दी आया हुवा देख उद्धव खुश हो जाते है और निकल जाते है। रुक्मिणी और मोहन मे बोहोत ही प्यारभरी बाते होती है। तभि रुक्मिणी मोहन को बोलती है के यशोदा माँ सुबह मोहन के जाने के बाद आई थी। रुक्मिणीने उन्हे रोकने की बोहोत कोशीष की लेकिन वह रुकि नही। बस् बार बार पुछ रही थी के क्या मोहनने उनके बारे मे कूच कहा। रुक्मिणी मोहन को बताती है के जब रुक्मिणी ने यशोदा माँ से देवकिजी से मिलने की बात की तो यशोदा माँ वह बात टाल गयी और जल्दी वापस जाना है ऐसा केहेकर निकल गयी। रुक्मिणी को लगता है के यशोदा माँ और देवकीजी के बीच कूच प्रॉब्लेम है। रुक्मिणीने नंद बाबा से सुना था के यशोदा और देवकी पेहेले बोहोत अच्छी दोस्त हुवा करती थी। लेकिन अब एकदुसरेसे बात नही करती। वह ये बात मोहन को बोलती है और बताती है के ऊन दोनो की चुपकी के कारण कोई भी त्योहार अच्छेसे मनाना मुश्किल हो गया है। मोहन इस बात पर हसते है।

मोहन एक बिझनेस कॉन्फरन्स मे जाते है। वहा देश-विदेश से बोहोत लोग आए होते है। मोहन जीस टेबल पर बैठे होते है वही पॅरिस से आयी कालिंदी नाम की एक business woman बैठी होती है। कॉन्फरन्स के विषय थोडे बोअरिंग होते है। तो मोहन ऊब जाते है। वह कॉफी पीने जाना चाहते है। उद्धव उनके साथ जाने के लिये इन्कार करते है; तो मोहन अकेले जाते है। बाहर कॉफी लाऊनज मे कालिंदी भी बैठी होती है। मोहन को अकेले देख वह मोहन से बात करने आती है। मोहन को जब उसका नाम काळींदी है ये समझता है तो वह surprise होते है। कालिंदी केंहेती है के उसके पिता भारत से थे; उनोन्हे उसका नाम कालिंदी रखा था। दोनो मे बाते होती है और तब कालिंदी केंहेती है के अभि अभि उसके लॉयर ने उसे फोन करके बताया के उसका डिव्होर्स पास होगया। ये सुनते ही मोहन कालिंदी को सॉरी केहेते है। तब कालिदी बोलती है के अगर हम happily married केहेते है तो जब कोई अपनी चॉईस से डिव्होर्स ले तो happliy डिव्होर्स ऐसा क्यों नही केहेते? कालिंदी की यह बात मोहन के मन को छुजाती है और वह उसे डिव्होर्स का कारण पुछ्ते है। कालिंदी केंहेती है के उसके पती मे कूच कमी थी इस कारण कालींदी प्रेग्नेंट नही हो पारी थी। लेकिन उसके पती ने सब दोष कालिंदी पर दाल दिया था। ये बात कालिंदीने accepte नही की और उसने कोर्ट मे ये साबित किया के कालिंदीमे कोई दोष नही है; और फिर डिव्होर्स के लिये applay किया था। मोहन और कालिंदीमे बोहोत बाते होने लगती है। एक पल ऐसा आता है के वह दोनो एकदुसरे के करिब आते है। जब दोनो होश मे आते है तो मोहन कूच केहेने से पेहेले ही कालिंदी खुद उन्हे केंहेती है के यह शाम वह कभी भी नही भुलेगी। लेकीन आज के बाद वह मोहन को कभी मिलेगी भी नही। मोहन उसे केहेते है के उन्हे कालिंदी का मोह कूच पलो के लिये हुवा; लेकिन उसका उन्हे दुख नही है। लेकिन ये बात भी सच है के वह अपनी पत्नी रुक्मिणी से बोहोत प्यार करते है। दोनो हसकर एकदुसरे को बाय बोलते है और निकलते है।

मोहन का बचपन का दोस्त पेंद्या अब उसी शहर मे एक private कंपनी मे जॉब करता है। वह एकदम middle class होता है। अपनी जॉब और अपनी छोटीसी फॅमिली life इसमे वह बोहोत खुश होता है। एकबार वह मोहन को देख लेता है। पेहेलीबार मोहन से बात करनेको वह झिजकता है। लेकिन मोहन उसे देखते ही गले लगा लेते है और बोलते है की वह कभी भी उन्हे मिलने आ सकता है। मोहन को उससे मिलनेमे कोई आपत्ती नही है; ये जब पेंद्या को समझता है तो वह बोहोत खुश हो जाता है; और फिर वह अपने छुट्टी के दिन या फिर मोहन के ऑफिस के पास किसीं काम के लिये आता है तो मोहन को मिलने आने लगता है। मोहन किसीं भी मीटिंग मे हो या कूच जरुरी काम कर रहे हो; जब भी पेंद्या आता है तो वह सब काम दूर करके उसके साथ थोडा वक्त बिताया करते है। पेंद्या आकर मोहन के साथ हक से चाय पिता है और फिर निकल जाता है। उद्धव को पेंद्या का इस तरह आना अच्छा नही लगता। वह मोहन को पुछ्ते है के मोहन पेंद्या जैसे एक सामान्य आदमी को इतना entertent क्यों करते है। मोहन उद्धव को बताते है के सबसे pure hearted अगर कोई है तो ये पेंद्या। एक छोटीसी कंपनी मे एक क्लार्क है वह। हो सकता है के उसके घर मे financial प्रॉब्लेम्स हो। लेकिन इस बारेमे वह कभी भी बात नही करता। वह मोहन के साथ बचपन मे की मस्ती की बाते करता है। इसलीये मोहन उसके साथ वक्त बिताकर बोहोत फ्रेश होजाते है। आज भी कोई इतना innocent होता है ये देखकर मोहन को अच्छा लगता है। इसलीये फिर पेंद्या कभी कभी irritating behaviour करता है फिर भी मोहन वह आते ही अपना सब काम बाजूमे रखकर उससे बाते करते है।

मोहन की कंपनीने गव्हर्नमेंट का एक टेंडर भरा होता है। वह टेंडर रिजेक्ट होता है। सात्त्यकी ये बात मोहन को बोलते है। मोहन रिजेक्शन का कारण पुछ्ते है तो सात्त्यकी बताते है के नयी IAS ऑफिसर आयी है। उसने competative रेट्स न होने की वजह से टेंडर रिजेक्ट किया है। मोहन टेंडर की फाईल मंगवाते है और पुरी तरह पढ लेते है। फिर वह जाम्बवती को बोलकर उस IAS ऑफिसर की apointment फिक्स करवाते है।

मित्रविंदा मोहन के कॉलेज की दोस्त होती है। दोनो एक दुसरे को बोहोत पसंद करते है। दोनो मे बोहोत गेहेरी दोस्ती होती है। मित्रविंदा धिरे धिरे मोहन से प्यार करने लगती है। और फिर एक दिन वह खुद मोहन को prapose करती है। तब मोहन उसे बताते है के वह रुक्मिणी से प्यार करते है। मोहन मित्रविंदा को केहेते है के उन्हे वह पसंद है....लेकिन केवल एक दोस्त के नाते। मित्रविंदा का दिल तूट जाता है। वह बिना किसकी को बोले कॉलेज और अपनी पढाई छोडकर चली जाती है। वही मित्रविंदा अब IAS ऑफिसर बनकर वापस आती है। मोहन जब IAS ऑफिसर को उसके ऑफिस मिलने जाते है तो मित्रविंदा को देखकर खुश होते है। लेकिन मित्रविंदा उन्हे पेहेचान नही दिखाती। मोहन confuse हो जाते है और काम की बात करना चाहते है। मित्रविंदा उनकी बात सूननेको इन्कार करती है। मोहन वहा से निकल जाते है।


क्रमशः 

Friday, October 14, 2022

सर्वेश्वर (new age Krishna)

 सर्वेश्वर (new age Krushna)


मोहन एक बिझनेस टायकून है। वह अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ मुंबई मे रेहेते है। मोहन और रुक्मिणी को एक बेटा और एक बेटी है। वह दोनो अमेरिका मे अपनी पढाई कर रहे है। मोहन के चचेरे भाई उद्धव बिझनेस मे मोहन का हाथ बटाते है। उद्धव का अपना परिवार है। लेकिन वह जादा समय मोहन के साथ ही बिताते है। वह रोज सुबह मोहन के घर आते है और मोहन के साथ ही ऑफिस जाते है। रात को मोहन घर को घर छोडने के बाद ही वह अपने घर जाते है। उद्धव और रुक्मिणी मे भाई बेहेन जैसा प्यार है।

रुक्मिणी ने मोहन के साथ भागकर शादी की होती है। रुक्मिणी का भाई इस बात को लेकर रुक्मिणी से बोहोत नाराज है और इतने साल होने के बावजुद अभि भी रुक्मिणी से उसके मैके के लोग कोई contact नही रखते। रुक्मिणी इस बात को लेकर मन ही मन दुखी रेहेती है लेकिन ये अपने मन का ये दुख कभी दिखाती नही है। रुक्मिणी शुरवात के दिनो मे मोहन का हाथ उसके business मे बटाती है। लेकिन फिर घर की जिम्मेदारिया बढने की वहज से वह ऑफिस आना बंद कर देती है।

मोहन जब अपने बिझनेस की शुरवात करते है तब वह एक बडे बिझनेस मॅन सत्रजित से मदत मांगते है। लेकिन वह इन्कार कर देते है। सत्रजित की बेटी सत्यभामा मोहन को कॉलेज के दिनो से जानती है और मन ही मन उन्हे चाहती है। सत्यभामा का डिव्होर्स हुवा होता है। जब सत्यभामा को पता चलता है के मोहन सत्रजीत से मदत चाहते है तब वह अपने पिता को insist करती है के वह ये प्रस्ताव मान ले और मदत के बाजाए पार्टनरशिप कर ले। इस तरह सत्यभामा मोहन की बिझनेस पार्टनर बन जाती है। सत्यभामा हर वक्त मोहन को पाने की कोशीष मे रेहेती है।

मोहन की सेक्रेटरी का नाम जाम्बवती है। जाम्बवती बोहोत ही होशियार है। वह मोहन का बॅक ऑफिस बोहोत ही अच्छेसे संभालती है। जाम्बवती दीखने मे एकदम ordinary है। उसकी शादी की उम्र निकल चुकी है। घर की जिम्मेदारियो के कारन उसने शादी नही की है।

मोहन के बडे भाई बलराम मोहन का दिल्ली का बिझनेस संभालते है। लेकिन बलराम को अपने काम से ज्यादा वर्जिष का लगाव है। इसलीये उनका बिझनेस मे ज्यादा ध्यान नही होता। इस बात का फायदा मोहन के रायव्हल हिमालय लेते है और एसी situation पैदा करते है के बलराम business world मे बदनाम हो जाएंगे और दिल्ली का बिझनेस बंद पड जाएगा। मोहन के मॅनेजर सात्त्यकी ये बात मोहन को बताते है। मोहन उद्धव को हिमालय की पर्सनल इंफॉर्मशन निकलने केहेते है। हिमालय की बेटी सत्या को बॉलिवूड मे एन्ट्री करनी है। ये बात पता चलते ही मोहन उद्धव को लेकर दिल्ली जाते है। वह सत्या को डिनर पर invite करते है और वहा उसे बोलते है के अगर वह अपने पिता से बलराम ने साईन किये हुवे documents लाकर देगी तो मोहन उसे बॉलिवूड की बडी फिल्म मे ब्रेक देंगे। सत्या मोहन की personality से impress हो जाती है और उनका काम करने का प्रॉमिस उसे करती है। उद्धव जब ये बात सुनते है तब वह मोहन को पूछ्ते है के क्या ऐसा करना सही है और क्या ये जरुरी है? मोहन बोलते है के हिमालय ने छल से बलराम भैया के sign लिये थे। अगर कोई आपसे कपट करता है तो उसे सबक सिखाना गलत बात नही है। उद्धव पुछ्ते है के क्या सत्या को बॉलिवूड का सपना दिखाना ठीक है? क्योकी अगर हिमालय चाहते तो वह खुद एक फिल्म उसके लिये बना लेते। लेकिन उनोन्हे ऐसा नही किया। इसका मतलब वह नही चाहते की सत्या बॉलिवूड मे काम करे। तब मोहन हसकर बोलते है के सत्या एक बडी लडकी है। अब वह इस मोडपर आचुकी है के उसे कोई फरक नही पडता के उसके पिता क्या सोचते है। वह बॉलिवूड मे काम करनेकेलीये घर छोडकर भी जा सकती है। हो सकता है के वह गलत हाथो मे पडजाए। उससे अच्छा तो यही है के मोहन उसकी मदत करदे। वैसे भी उसे सिर्फ एक push की जरूरत है। Eventually वह अपनेआप को prove करलेगी ये सच है।

मोहन घर आते है और फ्रेश होने के लिये अंदर जाते है। उद्धव रुक्मिणी के साथ बैठते है। रुक्मिणी उन्हे बलराम भैया की खबर पुछती है। जिस काम के लिये गये थे वह हुवा क्या ये भी पुछती है। उद्धव हसकर बोलते है के यह प्रश्न रुक्मिणीने मोहन से ही करना चाहीये। तभि मोहन बाहर आते है। रुक्मिण उद्धव को खाना खानेके लिये रोकना चाहती है। लेकिन मोहन रुक्मिणी को समझाते है के वह उद्धव को बोहोत granted लेते है। उद्धवने अपने घर परिवार को भी वक्त देना चाहीये। रुक्मिणी इसपर हसती है। उद्धव निकल जाते है।

मोहन और रुक्मिणी खाना खाने बैठते है। रुक्मिणी दिल्ली के काम के बारे मे पुछती है। मोहन उसे सबकूच बताते है। रुक्मिणी हसकर बोलती है के क्या सच मे इतना कूच करने की जरूरत है? मोहन बोलते है के वह कूच भी गलत नही कर रहे। अगर कोई केवल खुद के लिये किसीं ओर को hurt करता है तो यह बात गलत है। लेकिन जब कोई आगे की सोचकर या सभी के लिये जो अच्छा है ये सोचकर कूच निर्णय ले तो वह गलत नही होता। अब मोहन और रुक्मिणी जिंदगी के ऐसें मोडपर है के उन्हे अपने खुद से ज्यादा अपने आजूबाजू के लोगोंके लिये सूचना चाहीये। इसलीये कभी कभी मन मे न होते हुवे भी मोहन वही कर रहे है।

मोहन के पिता नंद के दोस्त वसुदेव मोहन के शहर मे ही रेहेते है। नंद और वसुदेव मे गहरी दोस्ती होती है। शादी के बाद जब मोहन रुक्मिणी के साथ शहर आने की सोचते है तो नंद उसे वसुदेव के पास जानेकीं सलाह देते है। वसुदेव और उनकी पत्नी देवकी मोहन और रुक्मिणी को बोहोत मदत करते है। मोहन के business की शुरवात मे वसुदेव ही बँक मे गॅरेटर रेहेते है। मोहन और रुक्मिणी के वसुदेव और देवकी के साथ बोहोत ही अच्छे संबंध बंध जाते है।

जब देवकी का जन्मदिन होता है तो मोहन उसे मिलने जाते है। मोहन उद्धव के साथ गाडी मे बैठकर काम की बात कर रहे होते है। मोहन का ड्राईव्हर दारुकी मोहन से कूच बात करना चाहता है लेकिन मोहन उद्धव से काम की जरुरी बात कर रहे होते है तो दारुकी उनसे बात नही कर पाता। मोहन देवकी के घर के पास पोहोचते है और अंदर जाते है। वह देवकी और वसुदेव से मिलते है। थोडी देर बैठते है। देवकी उन्हे खाना खाने के लिये रुकने केंहेती है। लेकिन मोहन बिना रुके निकल जाते है। गाडी मे बैठते ही मोहन दारुकी को बोलते है के कब से यशोदा माँ ने भेजी उनके हाथ से बनी मिठाई जो दारुकी ने अपने पास रखी है वह उन्हे दे। दारुकी ये बात सूनकर हैरान होता है। तब मोहन बोलते है के जब से वह गाडी मे बैठे है तब से गाडी मे उसी मिठाई की खुशबू आरही होती है। दारुकि मोहन को बोलता है के जब मोहन दिल्ली गये थे तब मोहन को बिना बोले दारुकी गाडी लेकर गांव गया था। तब वह यशोदा माँ से मिला था। यशोदा माँ ने मोहन के लिये मिठाई देकर दारुकी को बोला था के आज के दिन ही उसने यह मिठाई मोहन को देनी है। दारुकी की बात सूनकर मोहन हस देते है।

मोहन ऑफिस पोहोचते है। मॅनेजर सात्यकी आकर मोहन को बोलते है के मोहन की पार्टनर सत्यभामाने एक नये client के साथ डील की है। इस client की कोई भी details मार्केट मे नही है। यह एक बडा ही गलत रिस्क है। मोहन सात्यकी को पुछते है के उनोन्हे सत्यभामा को रोका क्यों नही। सात्यकी केहेते है के सत्यभामा ने किसीं की बात नही मानी। तभि सत्यभामा; जो दिखनेमे बोहोत ही सुंदर है; बिना केबिन door knock किये अंदर आती है। वह सात्यकी की अधुरी बात सून लेती है और मोहन के सामने उन्हे डाटने लगती है। मोहन सत्यभामा को रोकते है और explain करते है के सत्यभामाने जिसके साथ डील sign की है वह client फ्रॉड है। सत्यभामा इस बात पर कूच उलटा जवाब देने की सोच ही रही होती है तब मोहन उसे याद दिलाते है के सत्यभामा के पिता सत्रजीत कंपनी को लेकर कितने perticular है। अगर उन्हे ये बात पता चली के सत्यभामा के कारण बडा लॉस्ट हुवा है तो वह ये बात accept नही करेंगे। अपने पिता का नाम सुनते ही सत्यभामा चूप हो जाती है।

तभि मोहन की secretary जाम्बवती अंदर आती है। जाम्बवती दिखनेमे बोहोत ही साधारण है। सत्यभामा हर वक्त जाम्बवती का अपमान करती रेहेती है। सत्यभामा को मोहन की बात का घुस्सा आया होता है। तो वह जाम्बवती का insult करती है। फिर वह मोहन को डिनर के लिये invite करती है। मोहन invitation accept करते है। तब सत्यभामा केबिन से निकल जाती है।

सत्यभामा के जाने के बात मोहन जाम्बवती को पुछ्ते है के वह हर बार सत्यभामा के tonts क्यों सून लेती है? और बोलते है के जो खुद के लिये stand नही लेते उनकी मदत कोई नही करता। जाम्बवती हसती है और बोलती है के वह सत्यभामा को इतना importence ही नही देती के उनकी बात का बुरा लगे। फिर वह मोहन को ऊस दिन के काम की update देती है और बाहर निकल जाती है।

सात्यकी मोहन को पुछते है के सत्यभामा उनकी business partner होतेहूए भी वह अपनी secretary जाम्बवती को सत्यभामा के खिलाफ क्यो भडकाते है। मोहन हसकर बोलते है के जब तक कोई खुद केलीये stand नही लेता तबतक कोई दुसरा मदत के लिये नही आता; यह बात जाम्बवतीने समझनी चाहीये। इसलीये मोहन हरबार जाम्बवती को टोकते है। सात्यकी हसकर बोलते है के लगता है आपने इतनी बार बोलने के बावजुद जाम्बवतीने ये बात मन पर नही ली। तब मोहन हसकर बोलते है के उसने पेहेले दिन ही ये बात समझली थी और इसलीये उसने अपनेआप को इस तरह groum किया है के उसे सत्यभामा की कोई भी बात का फरक ही नही पडता।

तभि उद्धव केबिन मे आते है। उद्धव आते ही मोहन को पुछ्ते है के क्या वह सच मे सत्यभामा के घर डिनर के लिये जा रहे है।


क्रमशः

Friday, October 7, 2022

प्रेम

 प्रेम


हा शब्द आपल्याला सगळ्यांनाच आवडतो. कारण आपण प्रत्येकजण आयुष्यात प्रेम नक्की करतो. अर्थात प्रत्येकाची आपलीच अशी पद्धत असते... पण ती नक्कीच त्याच्यासाठी गोड असते.

काहीजण खूप जास्त एक्सप्रेसिव्ह असतात. I love you म्हणायला त्यांना खूप आवडतं... मग सहाजिकच आहे की तेच I love you ऐकायला देखील त्यांना खूप आवडतं.

काही कृतीतून व्यक्त करतात... तर काही आयुष्यात फक्त एकदाच!

हे एकदाच व्यक्त करणारे असतात ना त्यांचं लॉजिक मला कळतच नाही. प्रेम आहेच... आणि ते माहीत आहे.... मग परत परत का म्हणायचं? असा विचार करणारे मुळात प्रेम करत असतील का? हा प्रश्न सतत माझ्या मनात येतो.

आमच्या मागच्या पिढीत तर प्रेम व्यक्त न करणं हेच प्रेम होतं. पण मग थोडा विचार बदलला. आमच्या तरुणपणी प्रेम व्यक्त करणं आवश्यक झालं. पण अगदी प्रामाणिकपणे सांगू का? आमच्या पिढीतल्या बहुतांशिंचं मत आहे की सुरवातीला केलं न व्यक्त... आणि ते यशस्वी देखील झालंच की.... म्हणजे लग्न झालं न आपलं; झालं तर मग. आता परत परत तेच? प्रेम होतं-आहे; म्हणून तर लग्न केलं-आणि संसार करतोय आपण!

पण अलीकडे मी माझ्या पुढची पिढी बघते आहे... ते व्यक्त सतत व्यक्त होत असतात. अर्थात त्यांच्याकडे अनेक माध्यमं आहेत; त्याचा ते पुरेपूर वापर करतात. व्यक्तिक सांगू का? मला ते खूप आवडतं. मी आमच्या पिढीतल्या अनेकांना हे म्हणताना ऐकलं आहे की हा छचोरपणा अमच्यावेळी नव्हता. मला असा विचार करणारे न खूप संकुचित मनाचे वाटतात.... किंवा असं तर नसेल न; की त्यांना मनातून आवडत असेल... पण मिळत नाही म्हणून नावं ठेवायची?

आमच्या पिढीमध्ये सर्वसाधारणपणे मुलगा मुलीला विचारायचा... आणि ते ही डायरेक्ट लग्नासाठी बर का!

पण अलीकडे थोडं वेगळं असतं. एक तर मुलानेच विचारायचं असं काही नसतं. मुलीला जर एकदा मुलगा मनापासून आवडला तर ती देखील तिच्या 'प्यार का इजहार' त्याच्या समोर करते. पण हे म्हणजे फक्त 'मला तू आवडतोस/ आवडतेस'; इतकंच असतं बारं का.... किमान सुरवातीला! मग सुरू होते ती Co-ship. म्हणजे एकमेकांना समजून घेणं. यात 'जन्मजन्मांतरीच' वगैरे नसतं... एकमेकांना समजून घेत एकमेकांचा अंदाज घेणं असतं. मला वाटतं या co-ship काळात एकमेकां बरोबरच स्वतःच्या मनातल्या भावनांना देखील ही मुलं समजून घेत असतात. या काळात एक गोष्ट अगदी स्पष्ट असते बरं का! जर सिनेमा किंवा बाहेर खायला गेले दोघे तर खर्च दोघेही करतात. आमच्या वेळी मुलगाच करायचा बरं का! पण मग जर मुलाची आर्थिक परिस्थिती फारशी चांगली नसेल... जी usually नसायचीच... मुलगी समजून उमजून काही demand नाही करायची.

आता आपापला खर्च... त्यामुळे मला जिथे आवडतं तिथे मी जाणार... Do you wanna accompany me? इतकं सरळ सोपं झालंय. या co-ship मध्ये जर दोघांच्या लक्षात आलं की जमतंय आपलं तर मग ते relationship या दुसऱ्या पायरीवर येतात. मग त्यांचं social media वरचं statusr बदलतं. अहं! गैरसमज नको हं! हे status फक्त In relationship! असं होतं. अर्थात हे प्रेम आणि co-ship आणि relationship चालू असताना शिक्षण आणि आयुष्यातले पुढचे प्लॅन्स देखील असतातच सुरू. अलीकडे अजून एक गोष्ट मी observe केली आहे... प्रेम आहे आणि असतंच! पण म्हणून आपल्या करियरमध्ये कोणीही compramise करत नाही. म्हणजे जर शिक्षण संपल्यानंतर कोणाही एकाला वेगळ्या शहरात किंवा अगदी वेगळ्या देशात जॉब ऑफर आली तर ती स्वीकारली जाते. अर्थात जर co-ship च्या पुढची पायरी असेल तर पार्टनरशी बोललं जातं. पण जर ऑफर उत्तम असेल तर सहसा comprmise नाही केलं जात.

मग खरं तर पुढची पायरी असते; ती म्हणजे long distance relationship ची. कधी ती जमून जाते; तर कधी पूर्ण गंडते. गंडली तर त्याला मी दोष नाही देणार आणि जमली म्हणून 'यशस्वी नातं' असा टॅग देखील नाही मान्य मला. कारणमीमांसा करूया का?

समजा नाही जमलं long distance relationship... तर का नाही जमलं? दोन वेगळे देश असतील तर वेगळ्या वेळा असतात जगण्याच्या. मग contact कमी होतो... त्यातून गैरसमज-वाद होऊ शकतात. केवळ दोन वेगळी शहरं असली तरी देखील कामाच्या वेळा आणि जो/जी एकटे असतात; त्यांना सगळं स्वतः manage करावं लागतं; त्यातून अनेकदा येणारं irritation... ही कारणं असू शकतात. मुळात कारणं काहीही असतील अवघड असतंच न ते. समजा bond खूप strong आहे; तर या वादातून आणि गैरसमजातून समजून घेण्याकडचा मार्ग असतो.

आमच्या पिढीमध्ये लग्नानंतर आई-वडिलांसोबत राहाणं खूप स्वाभाविक होतं. पण अलीकडे तसं नाही... गंमत म्हणजे अनेक आयांना; म्हणजे माझ्या वयाच्या अनेकजणींना; मुलाने-मुलीने वेगळं राहायला हवं असतं. अगोदर आमच्या पिढीची कारणं सांगते हं! नवीन पिढीमध्ये 9 to 5 जॉब हा concept नाही. त्यामुळे मुलगा/मुलगी सकाळी एकदा कामासाठी बाहेर पडली की घरी कधी येतील याचा नेम नसतो. Work from home असेल तरी देखील ऑफिसचं काम करताना भाजी चिरण वगैरे नाही करत कोणी.... आमच्या पिढीमध्ये मी अनेक स्त्रियांना ट्रेनमध्ये भाजी निवडताना आणि चिरून ठेवताना बघितलं आहे.... असो! न करणाऱ्या पिढीचा दोष नाही आणि करणाऱ्या पिढीचं महात्म्य नाही! तर.... आयांना देखील अलीकडे स्वतःचं असं आयुष्य हवं असतं. मैत्रिणींसोबत morning walk; कधीतरी मॉलमध्ये भटकणं; बाहेर जाणं; गाण्याचे कार्यक्रम; सिनेमा!!! मग स्वयंपाकाची बांधिलकी नको असते. अर्थात गरज असेल तेव्हा या आया एका पायावर असतात बरका मदतीला.

पुढच्या पिढीला तर त्यांचं मोकळं जगणं आणि वागणं यावर बंधन नको असतं; त्यामुळे वेगळं राहाणं हवं असतं. थोडी बायस होऊन एक सांगू का? मुलग्यांना.... त्यातल्या त्यात घरातलं काम कधी न शिकलेल्या; म्हणजे थोडक्यात अति लाडावलेल्या मुळग्यांना बरं का.... वेगळं राहायचं नसतं. पण अलीकडे मुली त्यांचं मत खंबीरपणे मांडतात आणि घेतलेल्या निर्णयावर ठाम असतात. त्यामुळे वेगळं राहणारी जोडपी अनेक असतात.

मुळात करियर सेट होईपर्यंत लग्न नसतंच. पण मग live in relations अनेक दिसतात. अर्थात यावर योग्य आणि अयोग्य अशी अनेक मत-मतांतर असू शकतात. माझं व्यक्तिक मत सांगायचं तर... मला पटतं हे live in! आपलं आपल्या जोडीदारासोबत जमतं आहे का याचा अंदाज घेणं चुकीचं नाही. एकदम लग्न करून एकत्र रहायला लागल्यावर वर्ष-दोन वर्षांनी जर जाणवलं की आपला निर्णय चुकला तर घटस्फोट घेणं अवघड जातं; आणि मुळात live in relationship कडे बघण्याचा आपला दृष्टिकोन आपण थोडा बदलायला हवा. राहून बघूया जमतंय का! असा विचार ही पिढी करते; असं आपण म्हणतो... पण जमवून घेण्यासाठी राहूया... असा विचार कशावरून करत नसतील ते?

आपण आपल्या मुलांवर लहानपणापासून संस्कार केले आहेत न? त्यावर तर विश्वास ठेवला पाहिजे न आपण? बरं! भांडणं कोणामध्ये होत नाहीत? एकदा कोणतंही couple एकाच बेडरूमचं छत बघायला लागलं न की वाद होतातच. कारण मग प्रेम असलं तरी रोमान्स कमी होतो... उद्या भाजी काय करायची? बिलं भरली आहेत की नाही? EMI cut होईल; account मध्ये balance आहे न.... हे विचार मनात यायला लागले न की romance कमी झालाच समजा!!!

आणि इथेच येतो माझा पहिला मुद्दा!!! प्रेम!!! प्रेम असतंच!! फक्त ते व्यक्त होत नाही. Friends.... एकवेळ romance कमी झाला तरी चालेल... प्रेम असतंच; व्यक्त झालं पाहिजे! मग ती कोणतीही पिढी असो! यार.... I love you हे जादूचे शब्द कोणत्याही वयात चेहेऱ्यावर हसूच आणतात.

काय पटतंय का?

Friday, September 30, 2022

प्रेम गीत

 प्रेम गीत


एका नवथर प्रेयसीच्या मनातले प्रेम भाव तिने व्यक्त केले आहेत.... हिंदीमध्ये! त्यात अजून एक हलकंसं वळण म्हणजे ती बंगाली आहे आणि तिचा प्रियकर मात्र उत्तर प्रदेशात राहणारा आहे. त्यामुळे नकळत जरी ती तिच्या भाषेत गुणगुणत असली तरी त्याला कळावं म्हणून तिने तिचे प्रेम भाव मात्र त्याच्या बोली भाषेत व्यक्त केले आहेत. कंसामध्ये लिहिलेले शब्द जरी देवनागरी मधले असले तरी ते बंगाली आहेत.... आणि पहिल्या दोन ओळी; म्हणजे अंतराच; बंगाली भाषेत लिहिला आहे.

एक थोडा वेगळा प्रयत्न केला आहे. आवडला का नक्की सांगा!

मैं ना जानु.. हाय.. नाही जानु.. मेरी जान..
प्रित कैसे छुपानी...
(आमी जानी ना.. हाय.. ना जानि.. अमार जान..
किभाबे भालोभाशा लुकाते...)

कैसे कैसे प्रीत लगी तोरे संग पियरवा...
एक दिन बात कहे हम मन का...
झुके नैनं... पलके हसी झुटीनवा...
कलाई मोरी तरसे... धडके जियरवा...

मै ना जानु.. हाय.. नाही जानु.. मेरी जान..
प्रित कैसे छुपानी...
(आमी जानी ना.. हाय.. ना जानि.. अमार जान..
किभाबे भालोभाशा लुकाते...)

भये हम बावरी.. हसे जब कोई... ली
देख ना ले मोहें... सखींया मोरी...
छुप छुपाए हम दिल को समेटी..
राह देखे तुमरी... सांज-सवेरी...

मै ना जानु.. हाय.. नाही जानु.. मेरी जान..
प्रित कैसे छुपानी...
(आमी जानी ना.. हाय.. ना जानि.. अमार जान..
किभाबे भालोभाशा लुकाते...)


तुम बिन कैसे रैन बिताऊ...
जले मोरा जियरा... कैसे बुझाऊं..
कहुं क्या अब हम.. हमरी सखी संग...
छुपे ना बात जब वो रहे नित संग...

मै ना जानु.. हाय.. नाही जानु.. मेरी जान..
प्रित कैसे छुपानी...
(आमी जानी ना.. हाय.. ना जानि.. अमार जान..
किभाबे भालोभाशा लुकाते...)

Friday, September 23, 2022

फिल्म लेखन आणि निर्मितीच्या निमित्ताने

फिल्म शूट या विषयावर मी कधी लिहीन असं मला वाटलंच नव्हतं. खरं सांगायचं तर राजकीय क्षेत्रात देखील काम करेन असा विचार देखील मी कधीच केला नव्हता... हे देखील तितकंच खरं! मात्र गेली दहा वर्ष मी काम केलं आहे. पण प्रामाणिकपणे सांगायचं तर ते माझं क्षेत्र नाही. म्हणूनच माझ्यासारखा स्वभाव असणारी व्यक्ती पराग सारखा खांबीर आधार असेल तरच काम करू शकेल या क्षेत्रात; हे लक्षात आलं आणि मग पक्का निर्णय घेतला की या क्षेत्रातून बाहेर पडायचं. पण मग पुढे काय करायचं ते मात्र ठरवलं नव्हतं. त्याचवेळी कधीतरी एकदा श्री. राहुल अगस्ती (फॅशन डिझायनर) यांनी मला माझ्या एका कथेसाठी विचारलं... आणि मग एक वेगळाच प्रवास सुरु झाला. त्या प्रवासाचं फलित म्हणजे मी आता माझी फिल्म निर्मिती कंपनी सुरू केली आहे.

सध्या 'Right Brain' या माझ्या निर्मिती कंपनी अंतर्गत दुसऱ्या फिल्मचं शूट सुरू आहे. माझी पहिली निर्मिती भय/ रहस्य कथेवर आधारित होती. त्यावेळचे काही फोटो....







आता मात्र एका पस्तिशीमधल्या पती-पत्नीच्या भावनिक गुंतावूनकीची प्रेम कहाणी; असा विषय आहे माझ्या दुसऱ्या फिल्मचा. या येणाऱ्या फिल्मच्या शूटचे काही फोटो .....






पण तसं बघितलं तर माझ्या कथेवर निर्मित होणारी ही चौथी फिल्म आहे. 'लालीची गोष्ट' या माझ्या कथेतील केवळ काही भागावर पहिली फिल्म शूट झाली होती 2018 मध्ये. त्यानंतर भर कोव्हिड काळात दहा मिनिटांची दुसरी शॉर्ट फिल्म 'स्टुडिओ अपार्टमेंट' केली. अर्थात हे दोन्ही सिनेमे म्हणजे केवळ एक प्रयोग होता. त्यावेळी मी कधीच असा विचार नव्हता केला की मी स्वतः फिल्म निर्मिती क्षेत्रात काही करेन.

माझी पहिली व्यावसायिक फिल्म 'एपिलॉग' ही जुलै 2022 ला फिल्लम् बाज फिल्म कंपनी या YouTube चॅनेलवर रिलीज केली. आजवर जवळ जवळ एक लाखांच्यावर views आहेत या फिल्मला. एक भय/ रहस्य कथा असूनही इतके जास्त views असणं मला खूप आनंद देऊन गेलं. अर्थात एक फिल्म लिहून, शूट करून रिलीज करणं हा एक वेगळाच अनुभव आहे.

कथा लिहिताना आपण केवळ वाचकांच्या मनाचा विचार करतो. पण प्रेक्षकांची मानसिकता वेगळी असते. मूलतः सिनेमा हे दृक्श्राव्य माध्यम. वाचक एखादा संवाद वाचताना त्या संवादातील व्यक्तिमत्व भाव कसे व्यक्त करत असतील याची त्यांच्या मनात कल्पना करतात. मात्र सिनेमामध्ये ते प्रेक्षकांना दिसतं. त्यामुळे त्यांना स्वतःचा विचार करण्याचं स्वातंत्र्य नसतं. आजवर हे मला सोपं वाटत होतं. पण आता मी स्वतःच सिनेमाच्या दृष्टीने कथा लिहायला लागले आहे त्यावेळी लक्षात येतं आहे की आपल्या मनातले भाव तंतोतंत जर प्रेक्षकांपर्यंत पोहोचवायचे असतील तर लेखक म्हणून खूप जास्त विचार करायला हवा.

कथा लेखक आणि वाचक हा थेट संवाद असतो; याउलट सिनेमासाठी लिहिणं हा अनेक माध्यमातून प्रेक्षकांपर्यंत पोहोचवायचा विचार असतो. लेखक आणि दिग्दर्शक यांचा सुसंवाद ही यशस्वी सिनेमाची पहिली पायरी. दुसरी पायरी म्हणजे दिग्दर्शक आणि अभिनेते यांचा सुसंवाद. अर्थात यामध्ये जोपर्यंत दिग्दर्शकला मान्य होत नाही तोपर्यंत अभिनेत्यांना तोच तो अभिनय आणि संवाद परत परत करावा लागतो. म्हणूनच कदाचित या क्षेत्रात दिग्दर्शकचं महत्व अनन्यसाधारण आहे. अर्थात अभिनेते हे खरे संवाद साधक आहेतच; त्यामुळे ते तिसरी पायरी आहे. लेखक आणि दिग्दर्शकाला जे सांगायचं असतं ते अभिनेते त्यांच्या संवादातून सांगतात.... आणिअनेकदा संवाद नसताना त्यांनी त्यांच्या चेहेऱ्याने बोलणे अत्यावश्यक ठरते. शेवटची पायरी म्हणजे एडिटिंग. अभिनेत्यांनी जे कॅमेरा समोर दाखवलं असतं; ते योग्य पद्धतीने कट करणं देखील तितकंच आवश्यक असतं. सगळी मिळून आलेली भेळ मग तिखट, आंबट, गोड असते... ती मायबाप प्रेक्षकांच्या सोमर ठेवली जाते.

कितीतरी मोठं टीम वर्क आहे हे. एका कुटुंबासारखं काम करणारं. काही हट्टी, काही फक्त सांगकामे आणि काही इच्छा असूनही केवळ गरजेपोटी पडेल ते काम करणारे... सगळे एकत्र येतात एका सुंदर कलाकृतीसाठी. 


Friday, September 16, 2022

गच्ची (गूढ कथा)

 गच्ची


"साब आप रोज टेरेसपे क्यो जाते है?" गंगारामने जिना चढणाऱ्या पुनीतला प्रश्न केला. त्याच्याकडे बघत डोळा मारून पुनीत म्हणाला; "वर्जिश करने को गंगा. और क्यो जाऊंगा?" त्याचं उत्तर ऐकून हसत हसत गंगाराम जिना उतरून गेला. एकदा तो गेला त्या दिशेने बघून पुनीतने गच्चीचा दरवाजा उघडला.

आत पाऊल टाकल्या टाकल्या त्याने प्रीतकडे बघितलं; तिने देखील त्याच्याकडे बघितलं. दोघेही एकमेकांकडे बघून ओळखीचं हसले. शोर्ट्स, क्रॉप टॉप घातलेली प्रीत आज तर बेफाम सुंदर दिसत होती. तिने तिचे उडणारे केस गोल फिरवून क्लीपने वर बांधले होते. हातात सिगरेट आणि समोर बिअरचा ग्लास ठेऊन तिने लापटॉपमध्ये डोकं खुपसलं होतं. पुनीतने हातातले डंबेल्स एकदा तोलले आणि व्यायामाला सुरवात केली.

पुनीतला त्या multi-stored इमारतीमध्ये रहायला येऊन जेमतेम पंधरा दिवस झाले होते. तो त्याच्या मित्राच्या फ्लॅटमध्ये राहात होता. पुनीतची इथे बदली झाली तेव्हा कुठे राहायचं हा मोठा प्रश्न होता त्याला. त्याने त्याच्या मित्राला फोन केला होता कुठेतरी भाड्याने घर मिळेल का विचारायला. तर मित्र म्हणाला त्याचा स्वतःचा फ्लॅट रिकामा होता. त्याला तो विकायचाच होता... जोपर्यंत विकला जात नाही तोपर्यंत पुनीतने रहायला हरकत नाही असं तो म्हणाला. एकदा तिथे पोहोचलं की घर शोधता येईल असा विचार करून पुनीतने फारसे आढेवेढे न घेता मित्राच्या फ्लॅटमध्ये राहायचं मान्य केलं.

फ्लॅट फर्निश होता आणि पुनीत एकटाच होता... त्यामुळे तसा काहीच प्रश्न नव्हता. ज्या दिवशी तो राहायला आला त्याच दिवशी त्याने प्रीतला बघितलं होतं. त्याच्याच मजल्यावर बाजूच्या फ्लॅटमध्ये ती राहात होती. तिच्याकडे बघूनच लक्षात येत होतं की एकदम बिनधास्त मुलगी असावी ती. पाहिले काही दिवस तर ती पुनीतकडे बघायची देखील नाही. पण मग एकदा ऑफिसमधून परत येऊन पुनीत त्याच्या फ्लॅटचं दार उघडत होता त्यावेळी त्याला प्रीत गच्चीच्या दिशेने जाताना दिसली. अंदाज घेण्यासाठी तो पटकन फ्रेश होऊन गच्चीत गेला.

प्रीत गच्चीत एका बाजूला बसली होती. समोर एक पेग भरलेला होता. शोर्ट्स आणि टी शर्ट घातलेली हातात सिगरेट असलेली प्रीत संध्याकाळच्या उतरत्या उन्हात अप्रतिम सुंदर दिसत होती. डोळ्याच्या एका कोपऱ्यातून तिच्याकडे बघत पुनीत उगाच इकडे तिकडे फिरत राहिला. प्रीतने एक-दोनदा मान वर करून त्याच्याकडे बघितलं. पण कोणताही रिस्पॉन्स दिला नाही. थोड्यावेळ timepass करून पुनीत खाली उतरला. थोड्या वेळाने जिन्यात पायांचा आवाज आला म्हणून पुनीतने फ्लॅटचा दरवाजा उघडला तर गंगाराम वॉचमन गच्चीचा जिना उतरून खाली येत होता.

"अरे गंगाराम तू क्या कर रहा था उपर?" पुनीतने गंगारामला विचारलं.

"हम क्या करेंगे साब? पानी का टाकी भर गया था. वो ऑटोमॅटिक पंप बंद पड गया है ना तो पंप बंद करने को उपर गया था. वैसे मुझे भी उपर जाने को अच्छा नही लागता. लेकीन क्या करने का? अपना तो नौकरी ही ऐसा है ना!" गंगाराम म्हणाला.

"क्यो रे. क्यो अच्छा नही लगता?" पुनीतने गंगारामला विचारलं. त्याला प्रीत बद्दल माहिती घ्यायची होती. पण डायरेक्ट कसं विचारायचं असा विचार करून त्याने आड मार्गाने प्रश्न करायला सुरवात केली.

"अरे साब. अब क्या बोलू? वो आपके बाजूवाले फ्लॅट की मॅडम के कारण ही तो ना..... पेहेले तो शाम को बच्चे भी खेलने को जाते थे. अब किसिकी मम्मी लोग नही भेजती उप्पर. दादा लोग तो सिर्फ मॅडम को देखने को जाते थे. लेकीन फिर एक बार प्रीत मॅडम के husband ने इतना तमाशा किया के सब लोग उपर जाना छोड दिये." गंगाराम खिशातून सिगरेट काढून शिलकवत म्हणाला.

"क्या बात कर रहे हो यार? शादी होगयी है क्या उसकी?" प्रीतच्या नवऱ्याचा उल्लेख ऐकून एकदम सरळ उभं राहात पुनीत म्हणाला.

"अभि क्या बताउं साब? रोज पिके आता था. फिर वो ही गालिगलोच, झगडा. फिर मॅडम उपर जाके बैठ जाती थी. सिगरेट मेरेसे ही मंगवाती थी ना. अच्छी खासी उपर की कमाई होती थी. उनके कारण ही तो ये ब्रँड की सिगरेट की आदत पड गयी. " गंगाराम म्हणाला.

"तो अब?" पुनीतने अंदाज घ्यायला विचारलं.

"अब क्या साब? अब फोन नही आता... और ये आदत नही जाती." अर्धी सिगरेट बुझवून खिशात ठेवत गंगाराम लिफ्टच्या दिशेने वळला.

अजून काही प्रश्न विचारला तर आगाऊपणा वाटेल म्हणून पुनीतने फ्लॅटचं दार लावून घेतलं.

त्याच दिवशी रात्री पुनीतला झोपेतून जाग आली. शेजारच्या घरातून जोरजोरात भांडल्याचा आवाज येत होता. पुनीतने काय बोलणं चाललं आहे ते समजून घ्यायचा खूप प्रयत्न केला. पण प्रीत आणि तिचा नवरा नक्की काय बोलत होते ते त्याला कळलं नाही. थोड्या वेळाने त्यांच्या फ्लॅटचा दरवाजा जोरात आपटल्याचा आवाज आला त्याला. पुनीत घाईघाईने त्याच्या फ्लॅटच्या मुख्य दरवाजा जवळ गेला. त्याला गच्चीच्या दिशेने पावलं वाजलेली कळली. तो दार उघडणार होता इतक्यात परत बाजूच्या फ्लॅटचा दरवाजा वाजला आणि पुनीत थबकला. 'आत्ता उगाच रिस्क नको' असा विचार करून तो मागे वळला आणि जाऊन झोपून गेला.

***

दुसऱ्या दिवशी पुनीत गच्चीत गेला तर त्याच त्या ठराविक कोपऱ्यात प्रीत बसली होती. तेच शॉर्टस आणि टी शर्ट, बिअर ग्लास, सिगरेट आणि लॅपटॉप. पुनीतच्या लक्षात आलं की ही रोज संध्याकाळी वर येऊन बसते. बहुतेक ही येते त्यावेळी कटकट नको म्हणून इतर कोणीच येत नाही. मग मात्र पुनीतने देखील स्वतःसाठी रुटीन ठरवून टाकलं. ऑफिसमधून आल्यावर तो रोज गच्चीमध्ये व्यायाम करायला जायला लागला. काही दिवसांनी प्रीत आणि पुनीतला एकमेकांच्या गच्चीत असण्याची सवय झाली. दोघेही अधून मधून एकमेकांमडे बघून हसायला लागले.

असेच काही दिवस गेले. अधून मधून शेजारच्या घरातून भांडणाचे आवाज यायचे पुनीतला. पण रात्रीच्या वेळी रिस्क नको म्हणून तो गप राहायचा. मात्र एक दिवस पुनीत हिम्मत करून प्रीत जवळ गेला.

"Hi. Am punit. I stay just the next door." प्रीतच्या दिशेने शेकहॅन्ड करण्यासाठी हात पुढे करत तो म्हणाला.

"I know..." प्रीत हसत म्हणाली.

"What do u know?" गोंधळून पुनीतने विचारलं.

"That u stay next door...!?" अजून काय अशा आवाजात प्रीतने उत्तर दिलं.

"Oh! My bad. I thought you know me even otherwise." ओशाळवाण हसत पुनीत म्हणाला.

असेच काही क्षण गेले. आता पुढे काय?

"Guess you are very health conscious. आपको रोज excercise करते देखती हूं. ऑफिस के बाद भी इतनी energy रेहेती है ये बडी बात है. That's amazing." प्रीत स्वतःच बोलायला लागली. त्यामुळे पुनीतला हायसं वाटलं.

"Yup. I have always been conscious about my work outs. कूच भी हो... exercise तो मै करता ही हूं. That's why have a very strong ......." शेवटचा शब्द मुद्दाम अर्धा सोडला त्याने. लपटॉपमधून मान वर करत प्रीतने त्याच्याकडे बघितलं.

"Strong body....." तो घाबरून पटकन म्हणाला.

"Oh yaah.... I can see that. What else is....." प्रीत देखील तेवढीच स्मार्ट होती. तिने देखील वाक्य अर्ध तोडलं.

"Else....!?" पुनीतचा गोंधळ उडालेला त्याच्या चेहेऱ्यावर पूर्ण दिसत होता. तो बघून प्रीतला हसायला आलं. हसत हसत तिने म्हंटलं; "I was generally asking you... as what else is happining around?"

"Oh... I thought...." पुनीत मोठा निश्वास टाकत म्हणाला.

"You thought?!" तिचा स्वर अजूनही मिश्किल होता.

"Oh! Nothing... nothing..." पुनीत सारवासारव करत म्हणाला.

"If anything more than your body is strong.... I would ......" प्रीत पुनीतची कळ काढायची थांबत नव्हती.

"What... हं???" पुनीत अस्वस्थ होत म्हणाला आणि प्रीत खळखळून हसली.

हसताना प्रीत अप्रतिम सुंदर दिसत होती. तिच्या चेहेऱ्यावर मावळत्या सूर्याची किरणं रंगाळत होती. त्यामुळे तिचे पिंगट डोळे अजूनच मधाळ दिसत होते. पुनीतला स्वतःला कळायच्या अगोदर त्याने प्रीतला एकदम जवळ घेतलं होतं. दोघेही एकमेकांच्या मिठीत विसावले. असेच काही क्षण गेले आणि पुनीत भानावर आला. त्याची मिठी सैलावली आणि प्रीतने डोळे उघडले.

"Oh... Guess I should get going." पुनीतकडे न बघता प्रीतने तिचं लॅपटॉप उचललं आणि ती निघाली.

ती जेमतेम गच्चीच्या दाराकडे पोहोचली असेल आणि पुनीत म्हणाला; "It's fullmoon today. Having chilled beer in cool breezy terrace is real fun. I love to have one today."

प्रीतने थबकून मागे वळून बघितलं आणि खूप गोड मधाळ हसली ती.

पुनीतला बिअरचा घोट घेताना खात्री होती की प्रीत नक्की येणार गच्चीवर. त्याचा ग्लास अर्धा संपला आणि गच्चीचं दार वाजलं. पांढरा शुभ्र नेटचा गाऊन घालून प्रीत दारात उभी होती. तिला बघून पुनीत हरवून गेला. प्रीतला मिठीत घेण्यासाठी तो एकदम पुढे आला आणि त्याचा हात लांब करत हसत प्रीत म्हणाली; "I thought u had invited me to have beer." आणि पुनीत एकदम ओशाळला.

"Oh! Of course! See this! It's real child. Had kept in fridger for a while to get real chilled." प्रीतसाठी ग्लास भरत तो म्हणाला.

"So? Still work from home?" चिअर्स करताना पुनीतने प्रीतला प्रश्न केला.

"Yah... If u say so." दूर नजर लावत प्रीत म्हणाली आणि तिने एक मोठ्ठा घोट घेतला. "Forget about me. Tell me about you." ती एकदम मोकळेपणी हसत म्हणाली.

"What about me? Got transfered here. Where to stay was a big question. This is my friend's flat; he wants to sell. Till then he allowed me to stay here. So here I am." पुनीत म्हणाला.

बहुतेक प्रीतचं पुनीतच्या बोलण्याकडे लक्षच नव्हतं. "I just love this full moon night. कितना सुकून होता है ना." तिच्या अप्रतिम सौंदर्याकडे बघत पुनीतने केवळ एक हुंकार दिला.

"एक बात पुछु प्रीत?" पुनीतने काहीसं खाकरून तिच्याकडे बघत प्रश्न केला.

"पुछो ना. इतना फॉर्मल क्यो बनते हो." हसत प्रीत म्हणाली.

"प्रीत... मै तुम्हारा और तुम्हारे पती का झगडा रोज सूनता हूं. अगर तुम चाहो तो मुझे बता सकती हो क्या बात है. मै तुम चाहो तो मै तुम्हे मदत कर सकता हूं." पुनीत म्हणाला.

"अब कूच नही हो सकता पुनीत." एक मोठा निश्वास टाकत प्रीत म्हणाली.

"क्यो? क्यो कूच नही हो सकता? प्रीत तुम्हारे जैसे indipendent लाडकी ने एसी बाते नही करनी चाहीये. क्या वो मारता भी है?" पुनीतने तिला हळुवार आवाजात विचारलं.

प्रीतने मानेनेच हो म्हंटलं आणि मान खाली घातली.

"तो फिर क्यो रहती हो उसके साथ?" पुनीतने तिचा हात हातात घेत तिला स्वतःकडे वळवत विचारलं.

प्रीत काही एक न बोलता मान खाली घालून उभी होती. पुनीतने हलकेच तिच्या हनुवटीला धरून तिचा चेहेरा वर केला. चांदण्यामध्ये नहाणारं अप्रतिम शिल्प होतं त्याच्या समोर. न राहावून प्रीतचं चुंबन घेण्यासाठी पुनीत पुढे झाला आणि प्रीतने लाजून परत मान खाली घातली. पुनीत मंदसं हसला आणि प्रीत देखील. पुनीतने तिला हलकेच जवळ घेतलं आणि दोघेही बरसणाऱ्या चांदण्यामध्ये नाहात उभे राहिले. असा किती वेळ गेला कोण जाणे... दोघे एकमेकांपासून लांब झाले आणि प्रीत हलकेच उडी मारून गच्चीच्या कठड्यावर बसली.

"Oh. Hey get down please. It's risky." तिचा हात धरून तिला खाली उतरायचा आग्रह करत पुनीत म्हणाला.

खळखळून हसत प्रीतने विचारलं; "क्यो डरते हो क्या?"

तिला खाली उतरवायचा प्रयत्न चालू ठेवत पुनीत म्हणाला; "डरने की बात नही है प्रीत. हम दोनोने बिअर पी रखी है. थोडा इधर उधर हो गया तो....."

खसकन त्याचा टी शर्ट धरून त्याला स्वतःकडे ओढत प्रीत म्हणाली; "थोडा इधर उधर हो गया तो पुनीत?"

तिच्या मधाळ डोळ्यात हरवून जात पुनीत म्हणाला; "तो..... nothing...."

प्रीतच्या डोळ्यात हरवलेला पुनीत त्याच्याही नकळत गच्चीच्या कठड्यावर बसला होता. प्रीत त्याच्या मिठीत होती. स्वर्ग याहून काही वेगळा असूच शकत नाही असं त्याला वाटत होतं.

"प्रीत.... I just can't believe that you are in my arms." तिला अजून घट्ट जवळ घेत पुनीत म्हणाला. प्रीतीचा चेहेरा देखील समाधानाने फुलला होता.

"पुनीत.... मै एक बात पुछु?" मिटल्या डोळ्यांनी समाधानी चेहऱ्याच्या प्रीतने पुनीतच्या मिठीत असताना त्याला प्रश्न केला.

"Now you are being formal my love." पुनीत म्हणाला.

त्याच्या मिठीतुन दूर होत त्याच्या डोळ्यात डोळे घालून प्रीतने त्याला विचारलं; "पुनीत.... शादी करोगे मुझसे?"

............... आणि त्या प्रश्नाने पुनीत पूर्ण घाबरून गेला.

"शादी?" त्याच्या तोंडून कसे बसे शब्द बाहेर पडले.

"हा! शादी!" प्रीत म्हणाली.

"प्रीत.... शादी?" पुनीतला काय बोलावं सुचत नव्हतं.

"क्यो पुनीत? तुम्हे मै पसंद हूं न?" प्रीतचा आवाज थोडा तीव्र झाला होता.

"हा.... पसंद हो प्रीत.... लेकीन शादी?" पुनीत तेच तेच परत परत बोलत होता.

"Exactly.... पुनीत.... शादी का नाम सूनते ही होश मे आए तुम. You too are same like all other men I have seen. तुम लोग लडकी का सिर्फ शरीर जानते हो. And exactly that's what I hate the most." बोलताना प्रीतचा आवाज मोठा व्हायला लागला होता... इतका मोठा की चरकायला लागला.

बिअरची नशा.... भणाणलेला वारा.... आणि प्रीतचं टिपेच्या आवाजातलं बोलणं... पुनीतला काय होतंय कळेनासं झालं....

"बोलो शादी करोगे.... पुनीत बोलो.... बोलो ना.... शादी करोगे...." प्रीत तेच तेच परत बोलत होती.

"No... that's not possible Preet. Am already married." पुनीतच्या तोंडून शब्द बाहेर पडले आणि त्याच क्षणी प्रीतने त्याला गच्चीवरून ढकलून दिलं......

.......................... पुनीत मोठ्याने ओरडत उठला होता. त्याच्या समोर गंगाराम अर्धी जळालेली सिगरेट पेटवत उभा होता.

"उठो साब. अब समझें इधर कोई क्यो नही आता? जाओ साब.... जाओ अपने रास्ते."

असं म्हणून पुनीतच्या दिशेने एक कुत्सित हास्य फेकून गंगाराम गच्चीचं दार उघडून खाली उतरला.

समाप्त